है आज लब पे क़सीदा इमाम बाक़ीर का
बुलंद ओ बाला है रुतबा इमाम बाक़ीर का
ज़मीन ओ अर्श वो जन्नत के विर्सेदार हैं ये
क्यों पूंछते हो है क्या क्या इमाम बाक़ीर का
माँ इनकी फातेमा बीनते हसन पदर आबिद
बुलंद कितना है दर्जा इमाम बाक़ीर का
बहाये दीने नबी के लिए जो खूँ अपना
वो सिर्फ ओ सिर्फ है कुनबा इमाम बाक़ीर का
हैं जद्दा फातेमा ज़हरा इमाम बाक़ीर की
खुदा का शेर है दादा इमाम बाक़ीर का
हमारा पांचवां दुनिया में आ गया रहबर
ज़रा लगाओ तो नारा इमाम बाक़ीर का
खुदा ने रुतबा इमामत का इनको बख्शा है
हर एक शह पे है क़ब्ज़ा इमाम बाक़ीर का
इरम हो कौसर ओ तसनीम या के हो जन्नत
वो सब का सब है इलाक़ा इमाम बाक़ीर का
सख्वातों मैं ये अफ़ज़ल और इल्म मैं आलिम
चला है इल्म का सिक्का इमाम बाक़ीर का
मैं कर रहा हूँ यूँ मिदहत इमाम बाक़ीर की
मैं एक ग़ुलाम हूँ अदना इमाम बाक़ीर का
क़सीदा शान मैं बाक़ीर की यूँ लिखा शारिब
के मिल रहा था सहारा इमाम बाक़ीर का
शारिब छौलसी✍
Comments
Post a Comment